अब नहीं है पहले जैसी बात उसकी चाल में
अब नहीं है पहले जैसी बात उसकी चाल में फिर से उलझी है नदी जलकुंभियों के जाल में जाग कर धागों से कोई काढ़ता है अब कहाँ प्यार के रंगीन अक्षर मखमली रूमाल में अपने बूढ़े बाप का दुख जानती हैं बेटियाँ इसलिये मर कर भी जी लेती हैं वो ससुराल में बीज, मिट्टी, खाद … Continue reading अब नहीं है पहले जैसी बात उसकी चाल में
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